Friday, 16 June 2017

              सावित्रीबाई फुले
   

देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता.लेकिन एक ऐसी महिला जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरूद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया पर उसे हिंदुस्तान ने भुला दिया.ऐसी महिला को हमारा शत-२ नमन...


   पूरा नाम  –   सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले
   जन्म       –   3 जनवरी 1831
  जन्मस्थान–  नायगांव, महाराष्ट
  पिता        –   खंडोजी नावसे पाटिल
  माता        –   लक्ष्मीबाई
  विवाह      –   ज्योतिराव फुल
सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी। सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में जन्मी महिला थीं, लेकिन उन्होंने उन्नीसवीं सदी में महिला शिक्षा की शुरुआत के रूप में घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को सीधी चुनौती देने का काम किया था। उन्नीसवींसदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां बुरी तरह से व्याप्त थीं। उक्त सामाजिक बुराईयां किसी प्रदेश विशेष में ही सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैल चुकी थीं। महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक, विधवा पुनर्विवाह आंदोलन के तथा स्त्री शिक्षा समानता के अगुआ महात्मा ज्योतिबा फुले कीधर्मपत्नी सावित्रीबाई ने अपने पति के सामजिक कार्यों में न केवल हाथ बंटाया बल्कि अनेक बार उनका मार्ग-दर्शन भी किया। सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिलेमें नायगांव नामक छोटे से गॉव में हुआ।

महात्मा फुले द्वारा अपने जीवन काल में किये गये कार्यों में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा। लेकिन फुले दंपति के कामों का सहीलेखा-जोखा नहीं किया गया। भारत के पुरूष प्रधान समाज ने शुरु से ही इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि नारी भी मानव है और पुरुष के समान उसमें भी बुद्धि है एवं उसका भी अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व है । उन्नीसवीं सदी में भी नारी गुलाम रहकर सामाजिक व्यवस्था की चक्की में ही पिसती रही । अज्ञानता के अंधकार, कर्मकांड, वर्णभेद, जात-पात, बाल-विवाह, मुंडन तथा सतीप्रथा आदि कुप्रथाओं से सम्पूर्ण नारी जाति ही व्यथित थी। पंडित व धर्मगुरू भी यही कहते थे, कि नारी पिता, भाई, पति व बेटे के सहारे बिना जी नहीं सकती। मनु स्मृति ने तो मानो नारी जाति के आस्तित्व को ही नष्ट कर दिया था। मनु ने देववाणी के रूप में नारी को पुरूष की कामवासना पूर्ति का एक साधन मात्र बताकर पूरी नारी जाति के सम्मान का हनन करने का ही काम किया। हिंदू-धर्म में नारी की जितनी अवहेलना हुई उतनी कहीं नहीं हुई। हालांकि सब धर्मों में नारी का सम्बंध केवल पापों से ही जोड़ा गया। उस समय नैतिकता का व सास्ंकृतिक मूल्यों का पतन हो रहा था। हर कुकर्म को धर्म के आवरण से ढक दिया जाता था। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारी और शुद्र को विद्या का अधिकार नहीं था और कहा जाता था कि अगर नारी को शिक्षा मिल जायेगी तो वह कुमार्ग पर चलेगी, जिससे घर का सुख-चैन नष्ट हो जायेगा। ब्राह्मण समाज व अन्य उच्चकुलीन समाज में सतीप्रथा से जुड़े ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें अपनी जान बचाने के लियेसती की जाने वाली स्त्री अगर आग के बाहर कूदी तो निर्दयता से उसे उठा कर वापिस अग्नि के हवाले कर दिया जाता था। अंततः अंग्रेज़ों द्वारा सतीप्रथा पर रोक लगाईगई। इसी तरह से ब्राह्मण समाज में बाल-विधवाओं के सिर मुंडवा दिये जाते थे और अपने ही रिश्तेदारों की वासना की शिकार स्त्री के गर्भवती होने पर उसे आत्महत्या तक करने के लिये मजबूर किया जाता था। उसी समय महात्मा फुले ने समाज की रूढ़ीवादी परम्पराओं से लोहा लेते हुये कन्या विद्यालय खोले।

भारत में नारी शिक्षा के लिये किये गये पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्री बाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिटटी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया। सावित्रीबाई ने देश की पहली भारतीय स्त्री-अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव हासिल किया। धर्म-पंडितों ने उन्हें अश्लील गालियां दी, धर्म डुबोने वाली कहा तथा कई लांछन लगाये, यहां तक कि उनपर पत्थर एवं गोबर तक फेंका गया। भारत में ज्योतिबा तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवंस्त्री शिक्षा का आंरभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने केअधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर ‘सत्यशोधक समाज‘ की स्थापना की। इस संस्था की काफी ख्याति हुई और सावित्रीबाई स्कूल की मुख्य अध्यापिका के रूप में नियुक्त र्हुइं। फूले दंपति ने 1851 मंे पुणे के रास्ता पेठ में लडकियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लडकियों का तीसरा स्कूल खोला। उनकी बनाई हुई संस्था ‘सत्यशोधक समाज‘ ने 1876 व 1879 के अकाल में अन्नसत्र चलाये और अन्न इकटठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की। 28 जनवरी 1853 को बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, जिसमें कई विधवाओं की प्रसूति हुई व बच्चों को बचाया गया। सावित्रीबाई द्वारा तब विधवा पुनर्विवाह सभा का आयोजन किया जाता था। जिसमें नारी सम्बन्धी समस्याओं का समाधान भी किया जाता था। महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया।

सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजांे की देखभाल करने के दौरान हुयी।

उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओंऔर दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने की बात करती है :-

      जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर,
                        बनो मेहनती
      काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा 
   करोज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के 
               बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो.
                      Mahatma Jyotiba Phule –                                           महात्मा ज्योतिबा फुल



ेपूरा नाम
   – महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले
जन्म          –    ११ अप्रैल १८२७
जन्मस्थान –    पुणे
पिता         –     गोविंदराव फुले
माता        –      विमला बाई
विवाह       –      सावित्रीबाई फुले

पेशवाई के अस्त के बाद अंग्रेजी हुकूमत की वजह से हुये बदलाव के इ.स. 1840 के बाद दृश्य स्वरूप आया. हिंदू समाज के सामाजिक रूढी, परंपरा के खिलाफ बहोत से सुधारक आवाज उठाने लगे. इन सुधारको ने स्त्री शिक्षण, विधवा विवाह, पुनर्विवाह, संमतीवय, बालविवाह आदी. सामाजिक विषयो पर लोगों को जगाने की कोशिश की. लेकीन उन्नीसवी सदिके ये सुधारक ‘हिंदू परंपरा’ के वर्ग में अपनी भूमिका रखते थे. और समाजसुधारणा की कोशिश करते थे.महात्मा जोतिराव फुले / Mahatma Jyotirao Phule इन्होंने भारतके इस सामाजिक आंदोलन से महराष्ट्र में नई दिशा दी.उन्होंने वर्णसंस्था और जातीसंस्था ये शोषण की व्यवस्था है और जब तक इनका पूरी तरह से ख़त्म नहीं होता तब तक एक समाज की निर्मिती असंभव है ऐसी स्पष्ट भूमिका रखी. ऐसी भूमिका लेनेवाले वो पहले भारतीय थे. जातीव्यवस्था निर्मूलन के कल्पना और आंदोलन के उसी वजह से वो जनक साबीत हुये.

काम करने वाले स्त्री और अछूत जनता का कई शतको से हो रहे शोषण की और सामाजिक गुलामगिरी की उन्होंने ऐतिहासिक विरोध किया. सावकार और नोकरशाही इन के खिलाफ उन्होंने लढाई शुरू की. महात्मा फुले ने 21 साल की उम्र में लड़कियों के लिये स्कुल खोला. भारत के पाच हजार सालो के इतिहास में लड़कियों के लिये येपहला स्कुल था. लड़कियों ने और अस्पृश्यों ने शिक्षा लेना मतलब धर्म भ्रष्ट करना ऐसा समझ उस समय था. उसके बाद ही उन्होंने 1851 में अछूत के लिये स्कुल खोला. उन्होंने पुना में स्त्री अछूत के लिये कुल छे स्कुल चलाये. लेकीन उनके इन कोशिशो को सनातन लोगों की तरफ से प्रखरता से विरोध हुवा. लेकीन फुले ने अपने कोशिश कभी नहीं रुकने दी. अपने आंगन का कुवा अस्पृश्यों के लिये खुला करके उन्हेंपानी भरने देना, बालविवाह को विरोध करना, विधवा विवाह का समर्थन करना, मुंडन की रूढी बंद करने के लिये नांभिको का उपोषण करवाना ऐसे बहोत से पहल महात्मा फुले ने किय.

महात्मा ज्योतिबा फुले / Mahatma Jyotiba Phule

‘ब्रम्ह्नांचे कसब’, ‘गुलामगिरी’, ‘संसार’, ‘शेतकर्यांचा आसुड’, ‘शिवाजीचा पोवाडा’, ‘सार्वजनिक’, ‘सत्यधर्म पुस्तिका’, आदी ग्रंथ लिखे है.ब्राम्हण ये भारत के बाहर से आये हुये आर्य है. और अछूत ये भारतीय ही है ऐसा सिध्दांत उन्होंने रखा. इस सिध्दांता की वजह से अभ्यासको में मतभेद है. फुले इन्होंने अपने पुरे लेखन में ब्राम्हणों पर जिन भाषा में टिका की है वो भी विवाद का विषय है. लेकिन ऐसी टिका करनेवाले फुले के ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ ये सबसे महत्त्वपूर्ण किताब की तरफ किसीका ध्यान ही नहीं था.भारतीय समाज की शोषण व्यवस्था खुली करके और जातीव्यवस्था अंत की लढाई खडी करके भी फुले इन्होंने समाज के समानता कही भी ठेस आने नहीं दी. इसलिये शायदमहात्मा गांधीने फुले को ‘सच्चा महात्मा’ ऐसा कहा है. तोडॉ. बाबासाहेब आंबेडकरने उन्हें गुरु माना है.
महात्मा फुले इन्होंने अछूत स्त्रीयों और मेहनत करने वाले लोग इनके बाजु में जितनी कोशिश की जा सकती थी उतनी कोशिश जिंदगीभर फुले ने की है. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन, ब्रम्ह्नोत्तर आंदोलन, बहुजन समाज को आत्मसन्मान देणे की, किसानो के अधिकार की ऐसी बहोतसी लढाई यों को प्रारंभ किया.सत्यशोधक समाज ये भारतीय सामाजिक क्रांती के लिये कोशिश करनेवाली अग्रणी संस्था बनी. महात्मा फुले नेलोकमान्य टिळक , आगरकर, न्या. रानडे, दयानंद सरस्वती इनके साथ देश की राजनीती और समाजकारण आगे ले जाने की कोशिश की. जब उन्हें लगा की इन लोगों की भूमिका अछूत को न्याय देने वाली नहीं है. तब उन्होंने उनपर टिका भी की. यही नियम ब्रिटिश सरकार और राष्ट्रीय सभा और कॉग्रेस के लिये भी लगाया हुवा दिखता है.

कॉग्रेस को बहुजनाभिमुख और किसानो के हित की भूमिका लेने में मजबूर करने का श्रेय भी फुले को हीजाता है. महात्मा फुले का जीवन ये पूरा कोशिशो और संघर्षों से भरा हुवा दिखता है. उनकी मृत्यु 28 नवंबर 1890 को हुयी.

महात्मा फुले के बाद महाराष्ट्र में बहोत से सुधारक और विचारवंत होकर गये. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और महर्षी विठठल रामजी शिंदे ये उनमे से माने जाते है. इन दोनों ने भी महात्मा फुले के विचार अपने तरिके से आगे ले गये. बहुजन समाज ऐक्य का सैद्धांतिक विचार फुले के तत्त्वज्ञान में है ऐसा उस समय में कहा गया. भारत में जब तक जातिव्यवस्था और जातिधारित शोषण अस्तित्व में रहेंगा तबतक सामाजिक क्रांती के लिये लढने वाले lइसकृतिशिल विचारवंत का स्मरण होता

पढ़े ज्योतिबा फुले की पत्नी :- सावित्रीबाई फुले का इतिहास

Wednesday, 14 June 2017

    एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय

अब्दुल कलाम भारत के ग्यारहवें और पहले गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति रहे जिनको ये पद तकनीकी एवं विज्ञान में विशेष योगदान की वजह से मिला था| वे एक इंजिनियर व् वैज्ञानिक थे, कलाम जी 2002-07 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे| राष्ट्रपति बनने के बाद कलाम जी सभी देशवासियों की नजर में बहुत सम्मानित और निपुण व्यक्ति रहे है| कलाम जी ने लगभग चार दशकों तक वैज्ञानिक के रूप में काम किया है, वे बहुत से प्रतिष्ठित संगठन के व्यवस्थापक भी रहे है|
      एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय
       Apj Abdul kalam biography 



पूरा नाम.   डॉ.अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम
जन्म.         15 अक्टूबर, 1931
जन्म स्थान   धनुषकोडी गांव, रामेश्वरम, तमिलनाडु
माता-पिता.   असिंमा , जैनुलाब्दीन
म्रत्यु.            27 जुलाई 2015
राष्ट्रपति बने.   2002-07
शौक.            किताबें पढना, लिखना, वीणा वादन


अब्दुल कलाम जन्म व् शैक्षिक जीवन (Apj Abdul kalam Education)-

कलाम जी का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को धनुषकोडी गांव, रामेश्वरम, तमिलनाडु में मछुआरे परिवार में हुआ था, वे तमिल मुसलमान थे| इनका पूरा नाम डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम है| इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था| वे एक मध्यम वर्गीय परिवार के थे| इनके पिता अपनी नाव मछुआरों को देकर घर चलाते थे| बालक कलाम कोभी अपनी शिक्षा के लिए बहुत संघर्ष करना पढ़ा था| वे घर घर अख़बार बाटते और उन पैसों से अपने स्कूल की फीस भरते थे| अब्दुल कलामजी ने अपने पिता से अनुशासन, ईमानदारी एवं उदार स्वभाव में रहना सिखा था| इनकी माता जी ईश्वर में असीम श्रद्धा रखने वाली थी| कलाम जी के 3 बड़े भाई व् 1 बड़ी बहन थी| वे उन सभी के बहुत करीब रिश्ता रखते थे|
अब्दुल कलाम जी की आरंभिक शिक्षा रामेश्वरम एलेमेंट्री स्कूल से हुई थी| 1950 में कलाम जी ने B.Sc की परीक्षा st. Joseph’s college से पूरी की| इसके बाद 1954-57 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) से एरोनिटिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया| बचपन में उनका सपना फाइटर पायलेट बनने का था, लेकिन समय के साथ ये सपना बदल गया|

कलाम जी के करियर की शुरुवात –

1958 में कलाम जी D.T.D. and P. में तकनिकी केंद्र में वरिष्ट वैज्ञानिक के रूप कार्य करने लगे| यहाँ रहते हुए ही इन्होंने prototype hover craft के लिए तैयार वैज्ञानिक team का नेतृत्व किया| career की शुरुवात में ही अब्दुल कलामजी ने इंडियन आर्मी के लिए एक स्माल हेलीकाप्टर डिजाईन किया| 1962 में अब्दुल कलामजी रक्षा अनुसन्धान को छोड़ भारत के अन्तरिक्ष अनुसन्धान में कार्य करने लगे| 1962 से 82 के बीच वे इस अनुसन्धान से जुड़े कई पदों पर कार्यरत रहे| 1969 A.P.J. Abdul कलामजी ISRO में भारत के पहले SLV-3 (Rohini) के समय प्रोजेक्ट हेड बने|
APJ अब्दुल कलाम के नेतृत्व में 1980 में रोहिणी (Rohini) को सफलतापूर्वक पृथ्वी के निकट स्थापित कर दिया गया| इनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए 1981 में भारत सरकार द्वारा इनको पदम् भूषण से सम्मानित किया गया| A.P.J. अब्दुल कलामजी हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता को देते थे| उनका कहना था उनकी माता ने ही उन्हें अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी। वे कहते थे “पढाई के प्रति मेरे रुझान को देखते हुए मेरी माँ ने मेरे लिये छोटा सा लैम्प खरीदा था, जिससे मैं रात को 11 बजे तक पढ सकता था। माँ ने अगर साथ न दिया होता तो मैं यहां तक न पहुचता।”

अब्दुल कलाम जी का राष्ट्रपति बनना –

1982 में वे फिर से रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन केdirector बन गए| इनके नेतृत्व में Integrated guided missile development program को सफलतापूर्वक शुरू किया गया| अग्नि, प्रथ्वी व् आकाश के प्रक्षेपण में कलाम जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| सन 1992 में APJ अब्दुल कलामजी रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव बन गए| वे इस पद में 1999 तक कार्यरत रहे| भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिकों की लिस्ट में इनका नाम शामिल है| सन 1997 में APJ अब्दुल कलामजी को विज्ञान एवं भारतीय रक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत के सबसे बड़े सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया|
सन 2002 में कलाम जी को भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन॰डी॰ए॰ घटक दलों ने राष्ट्रपति के चुनाव के समय अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसका सबने समर्थन किया और 18 जुलाई2002 को एपीजे अब्दुल कलामजी ने राष्ट्रपति पद की शपत ली| कलाम जी कभी भी राजनिति से नहीं जुड़े रहे फिर भी वे भारत के सर्वोच्य राष्ट्रपति पद पर विराजमान रहे| जीवन में सुख सुविधा की कमी के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे, ये बात हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है| आज के बहुत से युवा एपीजे अब्दुल कलामजी को अपना आदर्श मानते है| छोटे से गाँव में जन्म ले कर इनती ऊचाई तक पहुचना कोई आसान बात नहीं| कैसे अपनी लगन, कङी मेहनत और कार्यप्रणाली के बल पर असफलताओं को झेलते हुए, वे आगे बढते गये इस बात से हमे जरुर कुछ सीखना चाहिए|

एपीजेअब्दुल कलाम जी का स्वाभाव –

एपीजे अब्दुल कलाम को बच्चों से बहुत अधिक स्नेह है| वे हमेशा अपने देश के युवाओं को अच्छी सीख देते रहे है, उनका कहना है युवा चाहे तो पूरा देश बदल सकता है| देश के सभी लोग उन्हें ‘मिसाइल मैन’ के नाम ने संबोधित करते है| डॉ एपीजे कलाम को भारतीय प्रक्षेपास्त्र में पितामह के रूप जाना जाता है| कलाम जी भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो अविवाहित होने के साथ-साथ वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से राजनीति में आए है| राष्ट्रपति बनते ही एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के एक नए युग की शुरुवात की जो कि आज तक आयाम है|

राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद का सफर –

राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद कलाम जी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी तिरुवनंतपुरम के चांसलर बन गए| साथ ही अन्ना यूनिवर्सिटी के एरोस्पेस इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर बन गए| इसके अलावा उन्हें देश के बहुत से कॉलेजों में विसिटिंग प्रोफेसर केरूप में बुलाया जाता रहा|

एपीजेअब्दुल कलाम की बुक्स (APJ Abdul kalam books)–

अब्दुल कलम साहब की ये कुछ बुक्स, जिनकी रचना उन्होंने कीथी:
*.इंडिया 2020 – ए विशन फॉर दी न्यू मिलेनियम
*.विंग्स ऑफ़ फायर – ऑटोबायोग्राफी
*.इग्नाइटेड माइंड
*.ए मेनिफेस्टो फॉर चेंज
*.मिशन इंडिया
*.इन्सपारिंग थोट
*.माय जर्नी
*.एडवांटेज इंडिया
*.यू आर बोर्न टू ब्लॉसम
*.दी लुमीनस स्पार्क
*.रेइगनिटेड

A.P.J.अब्दुल कलाम जी मिले मुख्य अवार्ड व् सम्मान –

1981.     भारत सरकार द्वारानेशनल अवार्डपद्म भूषण दिया                          गया|
1990.       भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण
1997.        भारत सरकार द्वारा देश का सर्वोच्च सम्मान                        भारत रत्न से नवाजा गया|
1997.        इंदिरा गाँधी अवार्ड
2011.         IEEE होनोअरी मेम्बरशिप
 इसके अलावा उन्हें बहुत सी यूनिवर्सिटी के द्वारा डोक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया|

एपीजेअब्दुल कलाम की म्रत्यु (A.P.J. Abdul kalam death) –

27 जुलाई 2015 को शिलोंग गए थे| वहां IIM शिलॉंग में एकफंक्शन के दौरान अब्दुल कलाम साहब की तबियत ख़राब हो गई थीवे, वहां एक कॉलेज में बच्चों को लेक्चर दे रहे थे, तभी अचानक वे गिर पड़े| जिसके बाद उन्हें शिलोंग के हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया और उनकी स्थिती नाजुक होने के कारण उन्हें आई सी यू में एडमिट किया गया | जिसके बाद उन्होंनेअपनी अंतिम साँसे ली और दुनिया को अलविदा कह दिया |इस दुखद खबर के बाद सात दिन के राजकीय शौक का ऐलान किया गया |84 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनियाँ को अलविदा कह दिया|
म्रत्यु के बाद 28 जुलाई को उन्हें गुवाहाटी से दिल्ली लाया गया, जहाँ उन्हें दिल्ली के घर में आम जनका के दर्शन के लिए रखा गया| यहाँ सभी बड़े नेता ने आकर उन्हें श्रधांजलि दी| इसके बाद उन्हें उनके गाँव एयरबस के द्वारा ले जाया गया| 30 जुलाई 2015 को कलाम जी का अंतिम संस्कार उनके पैत्रक गाँव रामेश्वरम के पास हुआ|
मिसाइल मेन कहे जाने वाले अब्दुल कलाम साहब ने देश की हर उम्र सेवा की अपने ज्ञान के माध्यम से उन्होंने देश को कईमिसाइल दी और देश को शक्तिशाली बनाया |उन्होंने भारत को सुरक्षित बनाने की दृष्टि से पृथ्वी, अग्नि जैसी मिसाइल उन्होंने दी | ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विख्यात रहे कलाम साहब देश को शक्तिशाली एवम आत्म निर्भर बनाना चाहतेथे |इन्होने तत्व विज्ञान में देश को स्वावलंबी बनाया |

अटल बिहारी वाजपेयीके साथ कार्यकाल में इन्होने देश के लिए बहुत योगदान दिया | यह अपने सरल एवम साधारण व्यव्हार के लिए प्रसिद्ध रहे | मुस्लिम होने के कारण इन्हें दुसरेमुल्क ने अपने मुल्क में बुलाया, लेकिन देश के प्रति प्रेम के कारण उन्होंने कभी देश को नहीं त्यागा |इन्हें देश के एक सफल राष्ट्रपति के तौर पर देखा गया था, इन्होने देश के युवा को समय- समय पर मार्गदर्शन दिया | उन्होंने अपने उद्घोष एवम अपनी किताबों के जरिये युवा को मार्गदर्शन दिया |

            भगवान गौतम बुद्ध के अनमोल विचार 

  

Quote 1 : All that we are is the result of what we have thought. If a man speaks or acts with an evil thought, pain follows him. If a man speaks or acts with a pure thought, happiness follows him, like a shadow that never leaves him.

In Hindi :हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है. यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती

Quote 2 :Better than a thousand hollow words, is one word that brings peace.
In Hindi :हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जोशांति लाये.

Quote 3 :All wrong-doing arises because of mind.If mind is transformed can wrong-doing remain?
In Hindi :सभी बुरे कार्य  मन के कारण उत्पन्न होते हैं. अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?

Quote 4:A jug fills drop by drop.
In Hindi :एक जग बूँद-बूँद कर के भरता है.

Quote 5 :Do not dwell in the past, do not dream of the future, concentrate the mind on the presentmoment.
In Hindi :अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो.

Quote 6 :Health is the greatest gift, contentment the greatest wealth, faithfulness the best relationship.
In Hindi : स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है.

In Hindi :जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्यभी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता.

Quote 8 :Three things cannot be long hidden: the sun, the moon, and the truth.
In Hindi :तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य.

Quote 9 :Work out your own salvation. Do not depend on others.
In Hindi :अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें. दूसरोंपर निर्भर ना रहे.

Quote 10 :You will not be punished for your anger, you will be punished by your anger.
In Hindi :तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पाओगे.

Quote 11:An insincere and evil friend is more to be feared than a wild beast; a wild beast may wound your body, but an evil friend will wound your mind.
In Hindi :किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्टमित्र से अधिक डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि कोनुक्सान पहुंचा सकता है.

Quote 12:Do not overrate what you have received,nor envy others. He who envies others does not obtain peace of mind.
In Hindi :आपके पास जो कुछ भी है  है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से इर्श्या कीजिये. जो दूसरों से इर्श्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती.

Quote 13:Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.
In Hindi :घृणा घृणा से नहीं प्रेम से ख़त्म होती है, यह शाश्वत सत्य है.

Quote 14:He who loves 50 people has 50 woes; he who loves no one has no woes.
In Hindi :वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो  जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है.

Quote 15:Holding on to anger is like grasping a hot coal with the intent of throwing it at someone else; you are the one who gets burned.
In Hindi :क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं.

Quote 16:However many holy words you read, however many you speak, what good will they do you if you do not act on upon them?
In Hindi :चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, वो आपका क्या भला करेंगे जब तक आप उन्हें उपयोग में नहीं लाते?

Quote 17:I never see what has been done; I only see what remains to be done.
In Hindi :मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.

Quote 18:Without health life is not life; it is only a state of langour and suffering – an image of death.
In Hindi :बिना सेहत के जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है- मौत की छवि है.

Quote 19:What we think, we become.
In Hindi :हम जो सोचते हैं, वो बन जाते हैं.

Quote 20:There is nothing more dreadful than thehabit of doubt. Doubt separates people. It is a poison that disintegrates friendships and breaks up pleasant relations. It is a thorn that irritates and hurts; it is a sword that kills.
In Hindi :शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है. शक लोगों कोअलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है. यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है.

Quote 21 : There are only two mistakes one can make along the road to truth; not going all the way, and not starting.
In Hindi :सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है; पूरा रास्ता ना तय करना, और इसकी शुरआत ही ना करना.

Quote 22 : In a controversy the instant we feel anger we have already ceased striving for the truth, and have begun striving for ourselves.
In Hindi :किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं.
              बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ।
             धम्मंशरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण लेता हूँ।
              संघंशरणंगच्छामि : मैं संघ की शरण लेता हूँ।
          
                    

एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बुद्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना। बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते। बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं।

अवतारों की कड़ी में बुद्ध अंतिम हैं। उनके बादप्रलयकाल तक कोई अवतार नहीं होने वाला है। हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म कोजानना है।
                       बुद्ध का जन्म :
भगवान बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी वन में 563 ई.पू. में हुआ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी थी। महात्मा बुद्ध अर्थात सिद्धार्थ (बचपन का नाम) के जन्म के सातवें दिन माता महामाया का देहान्त हो गया था, अतः उनका पालन-पोषण उनकी मौसी व विमाता प्रजापति गौतमी ने किया था।
               


                                                           
  सिद्धार्थ बचपन से ही एकान्तप्रिय, मननशील एवं दयावान प्रवृत्ति के थे। जिस कारण आपके पिता बहुत चिन्तित रहते थे। उपाय स्वरूप सिद्धार्थ की 16वर्ष की आयु में गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा से शादी करवा दी गई। विवाह के कुछ वर्ष बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। समस्त राज्य में पुत्र जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने कहा, आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कङी और जुङ गई। यद्यपि उन्हे समस्त सुख प्राप्त थे, किन्तु शान्ति प्राप्त नही थी। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृतव्यक्ति एवं सन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की तरफ मोङ दिया। अतः एक रात पुत्र व अपनी पत्नी को सोता हुआ छोङकर गृह त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पङे।

गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ मगध की राजधानी राजगृह में अलार और उद्रक नामक दो ब्राह्मणों से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये किन्तु संतुष्टि नहीं हुई। तद्पश्चात निरंजना नदी के किनारे उरवले नामक वन में पहुँचे, जहाँ आपकी भेंट पाँच ब्राह्मण तपस्वियों से हुई। इन तपस्वियों के साथ कठोर तप किये परन्तु कोई लाभ न मिल सका।इसके पश्चात सिद्धार्थ गया(बिहार) पहुँचे, वहाँ वह एक वट वृक्ष के नीचे समाधी लगाये और प्रतिज्ञां की कि जबतक ज्ञान प्राप्त नही होगा, यहाँ से नही हटुँगा। सात दिन व सात रात समाधिस्थ रहने के उपरान्त आंठवे दिन बैशाख पूणिर्मा के दिन आपको सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। इस घटना को “सम्बोधि” कहा गया। जिस वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे “बोधि वृक्ष” तथा गय को “बोध गया” कहाजाता है।

                                                                                  ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध सर्वप्रथम सारनाथ(बनारस के निकट) में अपने पूर्व के पाँच सन्यासी साथियों को उपदेश दिये। इन शिष्यों को “पंचवगीर्य’ कहा गया। महात्मा बुद्ध द्वारा दिये गये इन उपदेशों की घटना को ‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन’ कहा जाता है। भगवान बुद्ध कपिलवस्तु भी गये। जहाँ उनकी पत्नी,पुत्र व अनेक शाक्यवंशिय उनके शिष्य बन गये। बौद्ध धर्म के उपदेशों कासंकलन ब्राह्मण शिष्यों ने त्रिपिट अंर्तगत किया 
त्रिपिटक संख्या में तीन हैं-
                             1.विनय पिटक
                           2.सुत्त पिटक
                                    3.अभिधम्म पिटक 
इनकी रचना पाली भाषा में की गई है।हिन्दू-धर्म में वेदों का जो स्थानहै, बौद्ध धर्म में वही स्थान पिटकों का है।

भगवान बुद्ध के उपदेशों एवं वचनों का प्रचार प्रसार सबसेज्यादा सम्राट अशोक ने किया। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर अशोक का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात करते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुँचाया। भीमराव रामजी आम्बेडकर भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।


महात्मा बुद्ध आजीवन सभी नगरों में घूम-घूम कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे। भ्रमण के दौरान जब वे पावा पहुँचे, वहाँ उन्हे अतिसार रोग हो गया था। तद्पश्चात कुशीनगर गये जहाँ 483ई.पू. में बैशाख पूणिर्मा के दिन अमृत आत्मा मानव शरीर को छोङ ब्रहमाण्ड में लीन हो गई। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के उपदेश आज भी देश-विदेश में जनमानस का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। भगवान बुद्ध प्राणी हिंसा के सख्त विरोधी थे। उनका कहना था कि,
                          जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और 
                     ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। 
                       इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर                           न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें|

  भगवान् बुद्ध के सुविचारों के साथ ही मैं अपनी कलम को विराम देना चाहूंगी , “हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोचके साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो परछाई की तरह  ही प्रसन्नता उसका साथ कभी नहीं छोडती।“


        भगवान गौतम बुद्ध के अनमोल विचार 


    एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय

                         महात्मा बसवेश्वर



नावे:        बसवा,बसवण्णा
जन्म:     ३० मार्च,इ.स. ११३४-
मृत्यू :        इ.स. ११६७

कर्नाटकातील संत व समाजसुधारक होते. त्यांनीहिंदू धर्मातीलजातिव्यवस्थेविरुद्धव अन्य हानिकारक प्रथांविरुद्ध संघर्ष केला. त्यांनी निर्गुण, निराकार एकेश्वरवादी श्रद्धेचा पुरस्कार केला. बसवेश्वरांनी घालून दिलेल्या मार्गाला लिंगायत पंथ किंवा वीरशैवधर्म किंवा शिवाद्वैत या नावांनी ओळखले जाते.

इसवी सनाच्या बाराव्या शतकात अहिंसा, सत्य, भूतदया आणि सर्वधर्मसमानता, यासारखे क्रांतिकारक विचार मांडले. हिंदू धर्मातील चातुर्वर्ण्य पद्धतीला आणि त्यातून जन्मलेल्या जाती पद्धतीला त्यांनी कायम विरोध केला."कायकवे कैलास" म्हणजे कर्म करण्यातच स्वर्ग आहे हा विचार त्यांनी मांडला. कोणतेही काम कमी प्रतीचे किंवा उच्च प्रतीचे नसते, सर्व मानव समान आहेत. कोणतीही जात श्रेष्ठ किँवा कनिष्ठ नाही असे तत्त्वज्ञान त्यांनी मांडले. आपल्या विचारांचा प्रचार आणि प्रसार करण्यासाठीत्यानी लिँगायत धर्माची स्थापना केली.

विश्वगुरू महामानव महात्मा बसवेश्वर :-

समाजसुधारक.बसवण्णा यांचा जन्म म्हैसूर (आजचा कर्नाटक)राज्यातील विजापूर जिल्ह्यातल्या बागेवाडी या तालुक्यात कम्मेकुळ या गावात, वैशाख शुद्ध तृतीया इ.स. ११३४ रोजी झाला. त्यांचे वडील मादीराज आणि माता मादलांबिका.
बसवण्णांनी कुडलसंगम येथे वास्तव्य केले. कुडलसंगम हे मलप्रभा व कृष्णा नदीच्या संगमावर बसलेले विजापुर जिल्ह्यातील छोटेसे गाव आहे. बसवण्णांनी समाजातील वाईट चालीरीतींना शह देण्याचा सम्यक विचार केला आणि येथूनच त्यांच्या सामाजिक आंदोलनास सुरुवात झाली. पुढे कामाच्या शोधार्थ बसवण्णा सोलापूर जिल्ह्यातील मंगळवेढा येथे आले. मंगळवेढा येथे बसवण्णांनी सामाजिक चळवळ आरंभ केली. ही चळवळ धार्मिक कर्म कांडाविरुद्ध आणि वर्णव्यवस्थेविरुद्ध होती. त्यांच्या परिवर्तनवादी विचारसरणीने बसवण्णा समाजात लोकप्रिय झाले. वैदिक धर्म नाकारून बसवण्णांनी लिंगायत पंथ स्थापन केला.
जगातील पहिल्या लोकशाही संसदेची स्थापना :-

बसवण्णांनीमंगळवेढायेथे "जगातील पहिली लोकशाही संसद म्हणजेच 'अनुभव मंटपाची' स्थापना केली. या अनुभव मंटपात सर्व धर्मातील लोक एकत्र येऊन सामाजिक अडचणींवर कशी मात करावी यावर चर्चा करण्याचे कार्य चालत असे. बसवण्णांनी समाजातील रूढीपरंपरा, वाईट चालीरीती यांना विरोध करून समाजाच्या हितकारक गोष्टींची अंमलबजावणी करणारी नवीन यंत्रणा तयार केली.

लिंगायत धर्म संस्थापक युगप्रवर्तक महात्मा बसवेश्वर:

वेदशास्त्र, होम-हवन, मूर्तिपूजा नाकारून बसवण्णांनी 'लिंगायत धर्म' स्थापन केला. आपण सर्व एकच आहोत हे सांगताना बसवण्णा आपल्या वचनात म्हणतात
  (वचन कन्नड भाषेत) : -

"इवनारव, इवनारव, इवनारवनेंदनिसदिरयया इस नम्मव,इव नम्मव, नम्मवनेंदनिसयया, कुडलसंगमदेवा, निम्म मनेय मगनैदानिय्या.

"वरील वचन मराठीत :-
हा कोणाचा, हा कोणाचा, हा कोणाचा ऐसे नच म्हणवावे;हा आमुचा, हा आमुचा, हा आमुचा ऐसेचि वदवावे.कुडलसंगमदेवा, तुमचा घरचा पुत्र म्हणवावे.

'वेद शास्त्र धर्म जे काही सांगतील मी त्यांना मानणार नाही.' आपल्या वचनात बसवण्णा म्हणतात,
"वेदक्के ओरेय कट्टवे,शास्त्रक्के निगळवनिक्कु वे,तर्कद बेन्न बारनेत्तुव, आगमद मूग कोयिवे, नोडखा,महादानी कुडलसंगमदेवा, मादार चेन्नय्यन, मनेय मग नामय्या.
"वचन मराठीत :-
वेदावर खडग प्रहार करेनशास्त्राला बेड्या लावीनतर्कशास्त्राच्या पाठीवर आसूड ओढेनआगमशास्त्राचे नाक कापेनमातंग चेन्नयाचा प्रिय आहे मी,कुडलसंगमदेवा.

मंदिर म्हणजे बहुजनाचे अंधश्रद्धा व भोळी मनोवृत्तीचे केंद्र आहे. म्हणून बसवण्णांनी आपल्या अनुयायांना मंदिरन बांधण्याचा आदेश दिला आहे. आपल्या देहालाच देवालय माना. देवालयापेक्षा देहालय श्रेष्ठ आहे.अशी शुद्ध विचारसरणी बसवण्णांची होती.

चातुर्वर्ण्य

वर्ण धर्माला वेडाचार ठरवतांना बसवण्णा म्हणतात,चांभार उत्तम तो दुर्वासकश्यप लोहार, कौंडिण्य तो न्हावीतिन्ही लोकी बरवी प्रसिद्धी तीजातीचे श्रेष्ठत्व हाची वेडाचार.

भस्म, गंध टिळा लावून काय उपयोग आहे, मणी गळ्यात बांधून काय उपयोग आहे जर तुमच्यात शुद्ध अंतरंग नसेल, मनाची शुद्धता नसेल हे सर्व देखावा आहे. लोक, ज्या गोष्टी आपल्या आचरणात येणे कठीण आहे त्याच गोष्टीच्या बाह्य अवडंबराने स्वतः शुद्ध मनाचे आहोत असा खोटा आव आणतात. जे देवाला दूध, लोणी, तूप अर्पण करतात ते अंधभक्त होत. त्या संदर्भात बसवण्णा म्हणतात,
दुग्ध ते उच्छिट तथा वासराचे।
पाणी ते मत्स्याचे उच्छिष्टची।
पुष्प ते उच्छिट तथा भ्रमराचे।
साधन पूजेचे काय सांगा ?

दूध हे वासराचे उष्ट असते, पाणी माशांचे उष्ट असते, पुष्पभ्रमराचे उष्ट असते असे वापरलेले अस्वच्छ उष्ट साधने देवाच्या पूजेचे साधन होऊ शकते का ? अशाप्रकारे बसवण्णांनी अंधश्रद्धा, कर्मकांड, जातीयता, बळी प्रथा, व्रतवैकल्य, उपास-तापास इत्यादींवर प्रखर हल्ला केला आहे. वीरशैव विचारधारा ही लिंगायतांना धार्मिक, मानसिक आणि सांस्कृतिक गुलाम करण्याचे षड्यंत्र आहे. आज लिंगायत विरुद्ध वीरशैव असा भेद निर्माण झाला आहे. वीरशैव हे सनातन धर्माचे कट्टर पुरस्कर्ते आहेत. वर्णधर्म त्यांना मान्य आहे, ब्राह्मण व्रतवैकल्ये मान्य आहेत. वीरशैव विचारधारेचा प्रमुख ग्रंथ सिंद्धान्त ’शिखामणी’ हा वर्णाश्रम धर्मावर आधारित असल्याचे कारण हा ग्रंथ आगम, निगम, शैवपुराण, वेद शास्त्र इत्यादींच्या मूळ स्रोतांशी बांधलेला आहे.

बसवण्णा एका वचनात म्हणतात : -
दगडाचा देव देव नव्हे।
मातीचा देव देव नव्हे।।
वृक्षदेव देव नव्हे।
सेतु बंध रामेश्वर।।
अन् इतर क्षेत्राचा।
देव देव नव्हे।।
देव तुमच्या अंतर्यामी।
हे कुडलसंगमदेवा।।

आज परिस्थिति अशी आहे की लिंगायत धर्माचा मूळ उद्देश आणिबसवण्णांची शिकवण काय आहे हे लोकांना माहीत नाही. लिंगातत हे पूर्णपणे ब्राह्मणी वर्चस्वाखाली आहेत. लिंगायत राशीभविष्य पाहतात तेही ब्राह्मणाकडून; लग्नाचेमुहूर्त ब्राह्मणाकडून काढून घेतात; त्यांचे लग्न व अन्यधार्मिक संस्कार ब्राह्मणच करतात. लिंगायत हे बसवण्णांच्या मूळ विचारधारणेपासून दुरावला गेला आहे.. त्यांचे ब्राह्मणीकरण केले गेले. लिंगायत हे कर्मकांड, देव, व्रतवैकल्य, भविष्यवाणी, यज्ञ, अंधश्रद्धा, आत्मा अशा चाकोरीत गुंतलेले आहेत. त्यामुळे लोकांना वाटते की ते ब्राह्मण आहेत. असाच प्रचार व प्रसार करून ब्राह्मणवादी लोक यशस्वी झाले आणि लिंगायतांना ब्राह्मणी धर्माच्या अधीन बनवले. संत बसवण्णांनी आयुष्यभर भटशाहीतून मुक्त करण्यासाठी अनुभव मंटपाची स्थापना केली. त्यातून साहित्य निर्माण केले. वेद, पुराण,स्वर्ग, देव देवता, आत्मा, पुनर्जन्म, यज्ञ, वैकल्य ही थोतांडे नाकारली आणि ७७० परगड जातीतील लोकांना सोबत घेऊन लिंगायत धर्माची स्थापना केली.बसवण्णा हे नाग लोकांचे दैवत आहे हे पटवून सांगताना

अक्कामहादेवी आपल्या वचनात म्हणतात:-

देव लोकांचा देव बसवण्णामत्स लोकांचा देव बसवण्णा,नाग लोकांचा देव बसवण्णा। मेदुगिरि मंदागिरीचा देव बसवण्णा।चेन्नमल्लिकार्जुना माझा तुमचा। तव शरणांचा देव बसवण्णा।

बसवेश्वर समाधी -
कुडलसंगम जिल्हा बागलकोट,कर्नाटक

बसवेश्वरांवरील पुस्तके

े*.कबीर और बसवेश्वर तुलनात्मक अध्ययन (हिंदी, लेखक -                       डॉ. शंकरराव कप्पीकेरी)
*.बसवबोध (बसवेश्वरांचे तत्त्वज्ञान, मूळ कानडी, मराठी अनुवाद डॉ. इरेश सदाशिव स्वामी)
*.महात्मा बसवेश्वर - कार्य आणि कर्तृत्व (मराठी, लेखक - सुभाष देशपांडे)
*.महात्मा बसवेश्वर आणि शरणकार्य (लेखक - डॉ. अशोक प्रभाकर कामत)
*.बसवेश्वर - काव्यशक्ति और सामाजिक शक्ति (हिंदी, लेखक - काशीनाथ अंबलगे)
*.बसवेश्वर (इंग्रजी, लेखक - अनंत पै)
*.वीरशैव तत्त्वज्ञान (मराठी, लेखक - सुधाकर देशमुख)





Tuesday, 13 June 2017

भारत का वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महराज 

भारत की पावन धरती ने कई वीर पुत्रों को जन्म दिया। इनमें से एक थे शिवाजी महाराज जिनका जन्म मराठा परिवार में हुआ था। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि महाराष्ट्र के इतिहास में वे आज तक के सबसे बड़े योद्धा हैं। शिवाजी महाराज भारत के स्वतंत्रता लड़ाई के बीज बोने वाले शूरवीर दिग्गजों में से भीएक माने जाते हैं।
    
स्वामी विवेकानंद कहते हैं –
  ’’शिवाजी  महाराज भारतीय मुक्तिदाताओं में सेएक हैं जिन्होंने हमारे हिंदु धर्म एवं देश को सम्पूर्ण रूप से डूबने से बचाया है। वे एक अतुल्नीय योद्धा थे। …‘‘

Life of Chhatrapati Shivaji Maharaj

नाम             :        शिवाजी शाहाजी भोंसले–
                            Shivaji Shahaji Bhosale
जन्म            :        अप्रैल 19 फरवरी 1630
                            शिवनेरी किला (वर्तमान में महाराष्ट्र में)
पिता            :        शहाजी भोसले
माता.           :        माता जीजाबाई
राज्यअभिषेक  :    6 जून 1674
शासनकालसन्. :   1674-1680
मृत्यु.               : 3 अप्रैल 1680
                       रायगढ किला, रायगढ, मराठा साम्राज्य                            (वर्तमान में महाराष्ट्र में)

Childhood of Shivaji Maharaj – शिवाजी महाराजका बचपन

शिवाजी महाराज का जन्म पुणे के जूनार में शिवनेरी के पहाड़ी किले में 19 फरवरी 1630 को हुआ था। उनकी माताजी ने उनका नाम शिवाजी,  देवी शिवाई के नाम पर रखा था जिनसे उन्होंने एक स्वस्थ शिशु के लिए प्रार्थना की थी। शिवाजी के पिता दक्षिण सल्तनत में बीजापुर सुल्तान के मराठा सेनाध्यक्ष थे।

शिवाजी महाराज अपनी माता के प्रति बहुत समर्पित थे। माता जीजाबाई अत्याधिक और धार्मिक थी। इस धार्मिक माहौल का शिवाजी पर बहुत गहरा असर पड़ा। उन्होंने रामायण और महाभारत का गहरा अध्ययन किया।

जब शाहजी ने शिवाजी और उनकी माता को पूणे में रखा तब उनकी देखरेख की जि़म्मेदारी अपने प्रबंधक दादोजी कोंडदेव को दी। दादोजी ने शिवाजी को घुड़सवारी, तीरंदाज़ी एवं निशानेबाज़ी,  आदि की शिक्षा दी। 12 वर्ष की उम्र में शिवाजी को उनके भाईयों के साथ बेंगलोर भेजा गया जहाँ इन्होंने प्रशिक्षण लिया।

प्राथमिक विजय– Shivaji’s first Battle

1645 में सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में शिवाजी ने टोरना किले के बिजापुरी सेनापति,  इनायत खान को रिश्वत देकर किले का कब्ज़ा पा लिया। पिता के मृत्यु के पश्चात शिवाजी ने दोबारा छापा मार कर 1656 में नज़दीकी मराठा प्रमुख से जव्वली का राज्य हासिल किया।

1659 में आदिलशाह ने अफ्ज़ल खान, उनके अनुभवी एवंपुराने सेनापति को शिवाजी को खत्म करने के इरादे से भेजा। इन दोनों के बीच प्रतापगढ़ के किले पर 10 नवंबर 1659 को युद्ध हुआ। ऐसा नियम तय हुआ था कि दोनों केवल एक तलवार व एक अनुयायी के साथ आयें।

विश्वाशघात के संदेह से शिवाजी महाराज ने दूसरे हथियार छुपा लिए थे तथा अफ्ज़ल खान को घायल करने के पश्चात अपने छुपे हुए सैनिकों को बिजापुर पर आक्रमण का निर्देश दिया।

28 दिसम्बर 1659 को इसी बहादुरी के साथ उन्होंने बीजापुर के सेनापति रूस्तमजमन के हमले का जवाब कोल्हापुर में दिया।

Shivaji and Mughals – मुगल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य के साथ शिवाजी ने 1657 तक शांतिपूर्ण रिश्ते रखे। उन्होंने औरंगज़ेब को बीजापुर हासिल करने के लिए मदद की थी जिसके बदले में बीजापुरी किले एवं गांवों का हक उन्हें दिया जाएगा। मुगलों से शिवाजी की टकरार मार्च 1657 में शुरू हुई जब उनके दो अफसरों ने एहमदनगर पर छापा मारा।
1666 में औरंगज़ेब ने शिवाजी को उनके 9 वर्षीय पुत्र सम्भाजी के साथ आगरा में आमंत्रित किया। इरादा था शिवाजी को कंदहार भेजने का जहाँ उन्हें मुगल साम्राज्य को जमाना था। परंतु 12 मई 1666 को औरंगज़ेब ने शिवाजी को अपने दरबार में सेनापतियों के पीछे खड़ा कराया। शिवाजी नाराज़ होकर चले गये पर उन्हें गिरफ्तार कर आगरा के कोतवाल के तहत नज़रबंद कर दिया गया। सम्भाजी की गम्भीर बिमारी का बहाना करते हुए शिवाजी वेश बदलकर 17 अगस्त 1666 को फरार हो गये। दक्षिण पहुँच कर शिवाजी ने खुद को मुगलों से बचाने के लिए सम्भाजी के मौत कर झूठी खबर फैला दी। 1670 के अंततक मुगलों के विरूद्ध युद्ध लड़कर उनके काफी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

राज्यअभिषेक – Rajyabhishek of Shivaji Maharaj

शिवाजी का राज्यअभिषेक एक भव्य समारोह में रायगढ़में 6 जून 1674 को किया गया। शिवाजी अधिकारिक तौर पर छत्रपति कहलाये गये।

संस्कृत को बढ़ावा – Promotion of Sanskrit Language

शिवाजी के परिवार में संस्कृत का ज्ञान अच्छा था और इस भाषा को बढ़ावा दिया गया। शिवाजी ने इसी परंपरा को बागे बढ़ाते हुए अपने किलों के नाम संस्कृत में रखें जैसे सिंधुदुर्ग, प्रचंडगढ़, तथा सुवर्णदुर्ग। उन्होंने राजनैतिक पुस्तक राज्यव्यवहार कोष को अधिकृत किया। उनके राजपुरोहित केशव पंडित स्वंय एक संस्कृत के कवि तथा शास्त्री थे। उन्होंने दरबार के कई पुराने कायदों को पुनर्जीवित किया एवं शासकिय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा का प्रयोग को बढ़ावा दिया।

धर्म – Religion

शिवाजी धर्मनिष्ठ हिन्दु थे परंतु वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे संतों की बहुत श्रद्धा करतेथे विशेष रूप से समर्थ रामदास का जिन्हें उन्होंने पराली का किला दिया जिसका नाम बाद में सज्जनगढ़ रखा गया। रामदास लिखित शिवस्तुति (महाराज शिवाजी की प्रशंसा) बहुत प्रख्यात है। शिवाजी जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का विरोध करते थे।वे स्त्रीयों के प्रति मानवता रखते थे। उनके समकालीन कवि, कवि भूषण कहते हैं कि अगर शिवाजी नहीं होते तो काशी अपनी संस्कृति खो चुका होता, मथुरा मस्जिदों में बदल गया होता एवं सब कुछ सूना हो गया होता। शिवाजी की सेना में कई मुसलमान सैनिकभी थे। सिद्दी इब्राहिम उनके तोपों के प्रमुख थे।

सेना – Army of Shivaji Maharaj

शिवाजी ने काफी कुशलता से अपने सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना(Navy)भी थी जिसकेप्रमुख मयंक भंडारी थे।

शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीती में नवीन तरीके अपनाये जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल था।

राजस्व योजना – Administration of Shivaji

शिवाजी ने तोडर मल तथा मलिक अम्बार के सिद्धांतों पर आधारित एक बेहतरीन राजस्व योजना पेश की। पूर्ण सर्वेक्षण के पश्चात जमीन का किराया कुल पैदावार का 33 प्रतिशत तय किया। शिवाजी ने अपने राज्य की मुद्रा जारी की जो कि संस्कृत भाषा में थी|

मृत्यु – Death of Shivaji maharaj

मार्च 1680 के अंत में शिवाजी को ज्वर एवं आंव होगयी। 3-5 अप्रैल के करीब उनकी 52 वर्ष की उम्र में मृम्यु हुई। उनकी मौत के पश्चात मुगलों ने दोबारा मराठा पर आक्रमण किया पर इस बार युद्ध कई वर्षों तक चला जिसमें मुगलों की हार हुई।
                       डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर

“जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिये” 
                          Dr.B.R. Ambedkar



पूरा नाम  
 –   भीमराव रामजी अम्बेडकर
जन्म        –    14 अप्रेल 1891
जन्मस्थान –    महू. (जि. इदूर मध्यप्रदेश)
पिता        –     रामजी
माता        –    भीमाबाई
शिक्षा       –    1915  में एम. ए. (अर्थशास्त्र)।
                   1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में से PHD।                   1921 में मास्टर ऑफ सायन्स।
                  1923  में डॉक्टर ऑफसायन्स।
विवाह         – दो बार, पहला रमाबाई के साथ (1908 में)                        दूसरा डॉ. सविता कबीर के साथ (1948 म

भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म ब्रिटिशो द्वारा केन्द्रीय प्रान्त (अब मध्यप्रदेश) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी मऊ में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल जो आर्मी कार्यालय के सूबेदार थे और भीमाबाईकी 14 वी व अंतिम संतान थे।

आंबेडकर के पूर्वज लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता,भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे ओ यहाँ काम करते हुए वो सूबेदार के पद तक पहुचे थे। उन्होने अपने बच्चो को स्कूल में पढने और कड़ी महेनत करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया।

आंबेडकर के पूर्वज लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता,भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे ओ यहाँ काम करते हुए वो सूबेदार के पद तक पहुचे थे। उन्होने अपने बच्चो को स्कूल में पढने और कड़ी महेनत करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया।

स्कूली पढाई में सक्षम होने के बावजूद आम्बेडकर औरअन्य अस्पृश्य बच्चो को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था और अध्यापको द्वारा न तो ध्यान दिया जाता था, न ही उनकी कोई सहायता की। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने पर कोई उची जाती का व्यक्ति उचाई से पानी उनके हातो पर डालता था, क्यू की उनकी पानी और पानी के पात्र को भीस्पर्श करने की अनुमति नहीं थी।

लोगो के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था। बादमें उन्होंने अपनी इस परिस्थिती को“ना चपरासी, ना पानी”से लिखते हुए प्रकाशित किया।

1894 में रामजी सकपाल सेवानिर्वुत्त हो जाने के बाद वे सहपरिवार सातारा चले गये और इसके दो साल बाद, आंबेडकर की माँ की मृत्यु हो गयी। बच्चो की देखभाल उनकी चची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुए की। रामजी सकपाल के केवल तिन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियों मंजुला और तुलासा। अपने भाइयो और बहनों में केवल आंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए ओर इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुए।

अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, उनके कहने पर अम्बावडेकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गाव के नाम “अम्बावाड़े” पर आधारितथा।

भीमराव आंबेडकर को आम तौर पर बाबासाहेब के नाम से जाने जाता हे, जिन्होंने आधुनिक बुद्धिस्ट आन्दोलनों को प्रेरित किया और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध दलितों के साथ अभियान चलाया, स्त्रियों औरमजदूरो के हक्को के लिए लड़े। वे स्वतंत्र भारत के पहले विधि शासकीय अधिकारी थे और साथ हीभारत के संविधाननिर्माता भी थे।

आंबेडकर एक बहोत होशियार और कुशल विद्यार्थी थे, उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनोमिक से बहोत सारी क़ानूनी डिग्री प्राप्त कर रखी थी और अलग-अलग क्षेत्रो में डॉक्टरेट कर रखा था, उनकी कानून, अर्थशास्त्र और राजनितिक शास्त्र पर अनुसन्धान के कारण उन्हें विद्वान की पदवी दी गयी.

उनके प्रारंभिक करियर में वे एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील थे। बाद में उनका जीवन पूरी तरह से राजनितिक कामो से भर गया, वे भारतीय स्वतंत्रता के कई अभियानों में शामिल हुए, साथ ही उस समय उन्होंमे अपने राजनितिक हक्को और दलितों की सामाजिक आज़ादी, और भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए अपने कई लेख प्रकाशित भी किये, जो बहोत प्रभावशाली साबित हुए

। 1956 में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर के बुद्ध स्वीकारा, और ज्यादा से ज्यादा लोगो को इसकी दीक्षा भी देने लगे।

1990 में, मरणोपरांत आंबेडकर को सम्मान देते हुए, भारत का सबसे बड़ा नागरिकी पुरस्कार, “भारत रत्न” जारी किया। आंबेडकर की महानता के बहोत सारे किस्सेऔर उनके भारतीय समाज के चित्रण को हम इतिहास में जाकर देख सकते है।
       
         एक नजर में बाबासाहेब अम्बेडकर की जानकारी

1920  में ‘मूक नायक’ ये अखबार उन्होंने शुरु करके                      अस्पृश्यों के सामाजिक और राजकीय लढाई को                  शुरुवात की।

1920    में कोल्हापुर संस्थान में के माणगाव इस गावको हुये              अस्पृश्यता निवारण परिषद में उन्होंने हिस्सा लिया।

1924  में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारनी सभा’ की स्थापना                की, दलित समाज में जागृत करना यह इस                          संघटनाका उद्देश था।

1927   में ‘बहिष्कृत भारत’  नामका पाक्षिक शुरु किया।

1927    में महाड यहापर स्वादिष्ट पानी का सत्याग्रह करके               यहाँ की झील अस्प्रुश्योको पिने के पानी के लिए                 खुली कर दी।

1927   में जातिव्यवस्था को मान्यता देने वाले ‘मनुस्मृती’ का           उन्होंने दहन किया।

1928.    में गव्हर्नमेंट लॉ कॉलेज में उन्होंने प्राध्यापक का                काम किया।

1930.   में नाशिक यहा के ‘कालाराम मंदिर’ में अस्पृश्योको              प्रवेश देने का उन्होंने सत्याग्रह किया।

1930 से 1932.    इस समय इ इंग्लड यहा हुये गोलमेज                      परिषद् में वो अस्पृश्यों के प्रतिनिधि बनकर                            उपस्थिति रहे। उस जगह उन्होंने अस्पृश्यों के                     लिये स्वतंत्र मतदार संघ की मांग की।

1932    में इग्लंड के पंतप्रधान रॅम्स मॅक्ड़ोनाल्ड इन्होंने                     ‘जातीय निर्णय’ जाहिर करके अम्बेडकर की                     उपरवाली मांग मान ली।

जातीय निर्णय के लिये Mahatma Gandhi का विरोध था। स्वतंत्र मतदार संघ की निर्मिती के कारणअस्पृश्य समाज बाकी के हिंदु समाज से दुर जायेगा ऐसा उन्हें लगता था। उस कारण जातीय निवडा के तरतुद के विरोध में गांधीजी ने येरवड़ा (पुणे) जेल में प्रनांतिक उपोषण आरंभ किया। उसके अनुसार महात्मा गांधी और डॉ. अम्बेडकर बिच में 25 डिसंबर 1932 कोएक करार हुवा। ये करार ‘पुणे करार’ इस नाम से जाना है। इस करारान्वये डॉ. अम्बेडकर ने स्वतंत्र मतदारसंघ की जिद् छोडी। और अस्पृश्यों के लिये कंपनी लॉ में आरक्षित सीटे होनी चाहिये, ऐसा आम पक्षियों माना गया।

1935 में डॉ.अम्बेडकर को मुंबई के गव्हर्नमेंट लॉकॉलेज के अध्यापक के रूप में चुना गया।

1936 में सामाजिक सुधरना के लिये राजकीय आधार होना चाहिये इसलिये उन्होंने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ स्थापन कि।

1942  में ‘शेड्युल्ट कास्ट फेडरेशन’ इस नाम के पक्ष की                    स्थापना की।

1942 से 1946 इस वक्त में उन्होंने गव्हर्नर जनरल की कार्यकारी मंडल ‘श्रम मंत्री’ बनकर कार्य किया।

1946 में ‘पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी’ इस संस्थाकीस्थापना की।

डॉ. अम्बेडकर ने घटना मसौदा समिति के अध्यक्ष बनकर काम किया। उन्होंने बहोत मेहनत पूर्वक भारतीय राज्य घटने का मसौदा तयार किया। और इसके कारण भारतीय राज्य घटना बनाने में बड़ा योगदान दिया। इसलिये ‘भारतीय राज्य घटना के शिल्पकार’ इस शब्द में उनका सही गौरव किया जाता है।स्वातंत्र के बाद के पहले मंत्री मंडल में उन्होंने कानून मंत्री बनकर काम किया।

1956 में नागपूर के एतिहासिक कार्यक्रम में अपने 2 लाख अनुयायियों के साथ उन्होंने बौध्द धर्म की दीक्षा ली।

          B.R. Ambedkar Book’s – किताबे :

*.हु वेअर शुद्राज?,
*.दि अनरचेबल्स,
*.बुध्दअॅड हिज धम्म,
*.दि प्रब्लेंम ऑफ रूपी,
*.थॉटस ऑन पाकिस्तान आदी.

Br Ambedkar Awards – पुरस्कार : 

1990  में ‘बाबा साहेब’ को देश के सर्वोच्च सम्मान‘भारत रत्न’से सम्मानित किया गया।

Br Ambedkar Death – मृत्यु :

 6 दिसंबर 1956 को लगभग 63 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।
जिस समय सामाजिक स्तर पर बहुजनो को अछूत मानकर उनका अपमान किया जाता था, उस समय आंबेडकर ने उन्हेंवो हर हक्क दिलाया जो एक समुदाय को मिलना चाहिये। हमें भी अपने आसपास के लोगो में भेदभाव ना करते हुएसभी को एक समान मानना चाहिये। हर एक इंसान का जीवन स्वतंत्र है, हमें समाज का विकास करने से पहले खुद का विकास करना चाहिये। क्योकि अगर देश का हर एक व्यक्ति एक स्वयं का विकास करने लगे तो, हमारा समाजअपने आप ही प्रगतिशील हो जायेंगा।हमें जीवन में किसी एक धर्म को अपनाने की बजाये, किसी ऐसे धर्म को अपनाना चाहिये जो स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारा सिखाये।